रविवार, 12 दिसंबर 2021

आधुनिक युग मे बदल गई बच्चों की जिज्ञासा!

दक्षिणापथ। कितना महत्वपूर्ण शब्द है जिज्ञासा जब तक मानव में कायम है वह हर चीज को जानना सीखना उसका अनुभव करना करते रहता है। सबसे ज्यादा छोटे बच्चों में यह बहुत ज्यादा होता है इसी के द्वारा प्रकृति के हर चीजों का अनुभव करते रहता है और यदि कहीं पर समझ नहीं आता तो पालक से पूछता है वह जानना सीखना परखना चाहता है हम लोगों का बचपन ऐसी ही अनुभूतियों से बीता है हम लोग प्रकृति के बहुत ही करीब रहकर जीवन जीए हैं। गांव के सभी बच्चे बगैर भेदभाव के आपस में मिलते खेलते लड़ते दूसरे दिन भूल जाते अपनी लड़ाई फिर से एक साथ कोई छोटी सी मिशन बनाकर निकल पड़ते और आपस में अनुभव के आधार पर जिज्ञासा को शांत करते। बीच-बीच में मैंने अपने बचपन की स्मृतियों को ग्रुप में साझा भी किया है आप लोग भी भरपूर साथ दिए।
खेलों में बांटी भंवरा गिल्ली डंडा रेस टिप गोबर में रखने वाले डंडे का खेल साइकिल के चक्के को दौड़ाते हुए दौड़ना तालाब में तैरना वहां भी रेस टिप बुड़ऊला खेलना इससे जीवन की बहुत सारी समस्या का निदान मिल भी जाता था। बच्चों को पता रहता था सब कुछ पाने के लिए हमें शारीरिक प्रयास करना ही पड़ेगा। वास्तविक जीवन था कल्पना से परे। भले रात में सोते समय दादी मां की कहानी काल्पनिक भी होती थी। दिवाली छुट्टियों में नाटक का आयोजन जिसमें हम अलग-अलग पात्रों के रोल अदा करते थे। यह भी दूसरे के चरित्र को जीने का अनुभव साथ ही साथ कुछ बच्चे इसी समय हारमोनियम तबला मंजीरा ढोलक नगाड़ा बजाना भी अनुभवी लोगों से रूचि के अनुसार अपने आप सीखते रहते थे। दर्शक हमारे अपने ही पालक सखा होते थे जो सुबह अभिनय की कैसे हुआ चर्चा भी करते थे। अपने पात्रों के डायलॉग याद करने पड़ते थे फिर उसे नाटक के लय के अनुसार बोलकर बेझिझक प्रस्तुत करते थे। इतनी बातें जो पढ़ाई से अतिरिक्त है कब हम सीख जाते थे पता ही नहीं चलता था। फिर खेती बाड़ी रोपाई कटाई में सीला बिनना उसे बेचकर अपना पॉकेट मनी बनाना। उनहारी के दिनों में राहर राखड़ी चना मसूर बोईर घरों में बाड़ियों में जाम छीता खीरा तोड़कर खाना तालाबों में पैदा हुए रतालू कांदा पोखरा सिंघाड़ा ढेस प्राकृतिक रूप से पैदा हुए फुटू रमकेलिया बेलिया मूंग गर्मी के दिनों में आम इमली बबूल लासा सभी मिल जाता था जिसे खाते थे हमारे गांव में गस्ती का फल भी गिराते थे और खाते थे। जैसे ही बरसात की 1-2 शुरुआत होती थी बाड़ियों में जरी भाजी भर्री में मछरिया मुस्केनी तोड़ना शुरू हो जाता था। इतना सब कुछ से बचपन भरा हुआ आगे बढ़ता था।
आज के बच्चै इन सब से अनभिज्ञ है वह नेट पर कार्टून की काल्पनिक दुनिया जिसमें बहुत सी अच्छी बातें भी है लेकिन जादू से सब कुछ पाने सीख जाते है इनमें इन सब चीजों को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है जिसका बहुत बड़ा भाग काल्पनिक होता है। ऐसी दुनिया मैं बच्चों को जीने के अभ्यास के साथ-साथ प्रकृति में ले जाकर वास्तविक दुनिया मैं भी उनको अनुभव करा कर उसकी जिज्ञासा शांत करने का प्रयास जिसमें वह दोनों स्वरूपों को जीए सिखाने का प्रयास अपने कामों को खुद होकर करने का अभ्यास कराना चाहिए।
बचपन के बाद जब हम वास्तविक दुनिया में प्रवेश करते हैं तो यही जिज्ञासा सीखने की जानने की नए नए क्षेत्रों में होनी चाहिए कभी भी यदि हमें सिक्योर लाइफ मिल गया है शांत नहीं होना चाहिए। जिसमें आपकी रुचि है पठन-पाठन पेंटिंग नए अविष्कार करने की प्रवृत्ति कहीं ना कहीं हमारे अंदर सुषुप्त अवस्था में पड़ा हुआ रहता है उसे उभारने का प्रयास करना चाहिए। जब हमारे सिक्योर लाइफ समाप्त हो जाती है तो मानव इसी के सहारे बुढ़ापे में अपने जीवन को आसानी से जीने का प्रयास करता है। उस समय जिस परिस्थिति में नयी जगहों मैं रह कर नए नए लोगों से मिलता है उनसे मिलकर भी जब तक जिज्ञासा रहती है जानने का प्रयास भी करता है और अपने अनुभव भी बांटता है।
बुढ़ापे में अध्यात्म बहुत बड़ा सहारा होता है जिसमें मगन होकर अच्छे बुरे का एहसास सोच समझकर करना चाहिए यहां पर भी कर्मकांड का अधिकांश भाग प्रदूषण से कम नहीं है।
एक चीज और मैं बोलना चाहूंगा आजकल नव युवकों में जो कट्टरवादीता पनप रही है उससे जो बच्चे डॉक्टर इंजीनियर या अन्य क्षेत्रों में आगे आकर समाज को नई दिशा दे सकते थे वह घृणा और नफरत से भरकर कहीं जेल के सलाखों में जाकर अपने आप को गवां ना बैठे इसै जहां तक हो सके रोकने का प्रयास हर मां बाप को करना चाहिए हम जानते हैं बहुत सारी विपरीत परिस्थितियां हैं जिनसे निपटना भी है उसे महसूस कर यदि हम सिर्फ दबाव एवं डर पैदा करके शांति स्थापित करने का प्रयास करते हैं वह कभी इससे समाप्त नहीं होगा यह हमारी पूर्वजों के छोड़े गए है इसे विवेक के द्वारा और आपस में भाईचारा उत्पन्न करके ही अच्छे बुरे का मापदंड लाकर हल करना होगा जिसके लिए शिक्षा जरूरी है कुछ धर्मो में धार्मिक शिक्षा कट्टरवादीता को आगे बढ़ाने का काम करते आ रही है जिसे पूरे विश्व को धार्मिक शिक्षा बंद करनी होगी और जब बच्चे हमारी मुख्य शिक्षा प्रणाली में वापस आएंगे तभी इसका हल निकल पाएगा मुझे ऐसा लगता है।
(बसंत चंद्राकर)



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें