रविवार, 26 दिसंबर 2021

छत्तीसगढ़ का मसीही समाज :  मानव सेवा की सौ साल पुरानी परम्परा 

दक्षिणापथ, रायपुर । भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है और इस रंग बिरंगी विविधता में एकता हमारे भारतीय समाज की सबसे बड़ी ख़ासियत । यहाँ सभी धर्मों और संस्कृतियों के लोग मिलजुलकर रहते हैं। देश के अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ भी सामाजिक समरसता और सर्वधर्म सम- भाव का प्रमुख केन्द्र है।  यहाँ सैकड़ों हजारों वर्षों से हर धर्म ,हर पंथ और हर समाज के लोग मिल जुलकर रहते आ रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के सामाजिक ,आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में मसीही समाज का भी अत्यंत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक योगदान है। कल 25 दिसम्बर को प्रभु यीशु मसीह की जयंती छत्तीसगढ़ में भी क्रिसमस के रूप में उत्साह के साथ मनाई गई । गिरजाघरों में  रंग बिरंगी रोशनी की गई थी। साहित्यकार कुमार लोरिश के अनुसार महान विभूतियों का जीवन दर्शन किसी एक देश या किसी एक समाज के लिए नहीं ,बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिए होता है। प्रभु यीशु का जीवन दर्शन भी समूची मानवता के लिए है।  दया ,करुणा , परोपकार और  पीड़ित मानवता की सेवा ही प्रभु यीशु मसीह के जीवन का संदेश है ।उनके  इस महान जीवन दर्शन के अनुरूप मसीही समाज ने छत्तीसगढ़ में भी मानव सेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। वर्ष 1897 में छत्तीसगढ़ में प्रथम मिशनरी के रूप में फादर लोर का आगमन हुआ था ,जिन्होंने बिलासपुर जिले के बैतलपुर में कुष्ठ पीड़ितों के लिए सेवाश्रम और अस्पताल खोला था।  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी प्रथम छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान वर्ष 1920 में इस अस्पताल का दौरा किया था और वहाँ के सेवा कार्यो की तारीफ़ की थी।
इसी कड़ी में महासमुंद जिले के जगदीशपुर को भी  लिया जा सकता है ,जहाँ मसीही समाज के सेवा कार्यों  की परम्परा और उसका   इतिहास  लगभग एक सौ साल से भी अधिक पुराना है। साहित्यकार कुमार लोरिश इसी जगदीशपुर के निवासी हैं । वह अपने आलेख में आगे बताते हैं — तत्कालीन समय में इस अत्यंत पिछड़े इलाके में आम जनता को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में मसीही समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान में यहाँ समाज द्वारा सौ बिस्तरों के अस्पताल का भी संचालन किया जा रहा है ।  इस जिले का  प्रथम पूर्ण साक्षर ग्राम है जगदीशपुर । लेखक कुमार लोरिश के अनुसार यहाँ मसीही समाज के  चर्च की कहानी लगभग सौ साल पहले तबसे शुरू होती है,जब इस घनघोर जंगल में अमेरिका से आए जनरल कान्फ्रेंस मेनोनाईट चर्च के मिशनरी श्री एवं श्रीमती रेव्ह. शेमूएल टाईसन मोयर्स वर्ष 1920 में  चाम्पा से जगदीशपुर आए थे । उन्होंने तत्कालीन फुलझर जमींदार राजा लाल बहादुर सिंह (वर्तमान बसना विधायक राजा देवेन्द्र बहादुर सिंह के दादाजी)के सौजन्य  से मानव सेवा कार्य प्रारंभ करने के लिए जमीन प्राप्त की थी।। बताते हैं कि तब यहां पर बाघ,चीता जैसे जंगली जानवर  विचरण करते  थे। जगदीशपुर में वर्ष 1923 में सर्वप्रथम मिट्टी के बने गिरजाघर में आराधना होती थी।तत्कालीन  बंगाल प्रान्त  आए बैप्टिस्ट मिशनरियों ने छत्तीसगढ़ के फुलझर क्षेत्र में प्रभु यीशु के जीवन संदेशों  का प्रारम्भिक प्रचार किया था, अतएव कुछ आरम्भिक बैप्टिस्ट क्रिश्चयन इन मिशनरियों के पास आए और उन सबने मिलकर जगदीशपुर क्षेत्र में मिशन के सेवा कार्यो  की बुनियाद  रखी। इन मिशनरियों ने वर्ष 1928 में सेवा भवन अस्पताल की नींव रखी,जो वर्तमान में महासमुंद जिले का नामचीन एवं सर्वसुविधायुक्त अस्पताल है। वर्ष 1950 में यहाँ  गिरजाघर के नए भवन का लोकार्पण हुआ था। बेतेल मेनोनाईट चर्च के नाम से जाने गए इस गिरजाघर का नवीन डिजाईन बनाया गया था। गिरजाघर के निर्माण के समय अमेरिकन मिशनरियों सहित अनेक लोगों ने सहयोग व परिश्रम किया था, उनमें से कई  अब दिवंगत हो चुके हैं।  मिशनरियों ने जगदीशपुर में वर्ष  1930 में प्राथमिक शाला एवं 1939 में मिडिल स्कूल खोला था। वर्ष 1945 में यही स्कूल जेनसन मेमोरियल एग्रीकल्चर हाईस्कूल  के रूप में विकसित किया गया था।



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